प्रकृति और मानव
"प्रकृति और मानव"
हे ईश्वर!
यह तूने कैसी सृष्टि बनाई
इसमें थी कभी प्रकृति भी खिलखिलाई।
रहता था जो मानव प्रकृति की गोद में ,
वही लगा आज उसकी तोड़ फोड़ में ।
प्रकृति से खिलवाड़ करता जा रहा,
मानव हर हद को पार करता जा रहा ।
शहरों को बसाता जा रहा ,
पेड़ पौधों को मिटाता जा रहा ।
खुद के लिए सुविधाएं जुटाता जा रहा।
प्रकृति चुप है तो,
उसको बेजान समझ बैठा है।
खुद को अभिमानी ,
और,,,,,,,
सृष्टि की आन ,बान, शान, समझ बैठा है।
नदियों का रुख मोड़ रहा है ।
कहीं बाढ़, कहीं सूखा ,
कहीं पर महामारी का प्रकोप छा रहा है ।
अपनी गलतियों से मानव ,
अब बड़ा पछता रहा है।
सोचा था ना जहां,
वहां भी प्रलय ,बवंडर का कहर छा रहा है ।
मानव का विज्ञान भी अब बेबस नजर आ रहा है ।
"जो बोया है वही पाओगे "कहावत का ,
अब मतलब समझ आ रहा है ।
कांटे जितने पेड़ हमने ,
लाशों से उसका हिसाब चुकाया जा रहा है।
पशुओं से बसेरा छीना जिसने,
अब अपनी सांसें गिन रहा है।
अपने खोदे गड्ढे में ,
मानव खुद ही गिर रहा है ।
पर्यावरण असंतुलित हुआ,
प्रकृति सब पर भारी पड़ी है।
प्रकोप से खौफ खा रहा।
अब मानव बहुत पछता रहा ।
सैलाब आया मानव जीवन में,
नष्ट भ्रष्ट कर लोटेगा ।
तब ईश्वर भी कुछ ना कर पाएगा,
प्रकृति का कहर जब छाएगा ।
" अनु कौंण्डल "
Inayat
05-Mar-2022 01:34 AM
Shandar
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Anu koundal
08-Mar-2022 08:03 PM
🙏🙏
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Arshi khan
03-Mar-2022 06:34 PM
Bahut khoob
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Anu koundal
08-Mar-2022 08:03 PM
🙏🙏
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Gunjan Kamal
24-Feb-2022 02:58 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Anu koundal
25-Feb-2022 09:47 AM
🙏🙏🙏
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